Wednesday, December 14, 2011
समय व कार्य का सही प्रबंधन
आज के भौतिक युग के रफ्तार भरे दौर में
इंसान कभी जरूरतों तो कभी अनियंत्रित कामनाओं को पूरी करने की चाह में सुबह
से शाम तक शरीर के साथ दिमाग भी चलाता रहता है। नतीजतन शारीरिक थकान के
साथ मिलता है मानसिक तनाव, दबाव व चिंताएं। जिनसे अक्सर लक्ष्य पूर्ति,
जिम्मेदारी व कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा आती है।
ऐसी मनोदशा से छुटकारे के लिए जरूरी है समय व कार्य का सही प्रबंधन। किंतु धार्मिक उपायों में विष्णु भक्ति श्रेष्ठ मानी गई है। क्योंकि पौराणिक मान्यताओं में त्रिदेवों में एक जगतपालक भगवान विष्णु को सत्व गुणों का स्वामी माना गया है। जिसका मतलब है कि सांसारिक जीवन में हर तरह से पावनता, शांति, ज्ञान, प्रेम, सुख, आनंद, धैर्य, ऊर्जा, बल, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि सभी शुभ व मंगल भावों से जुड़ी कामनासिद्धि के लिए भगवान विष्णु का स्मरण श्रेष्ठ उपाय है।
शास्त्रों में खासतौर पर विष्णु उपासना के लिए ऐसे मंत्र भी बताए गए हैं, जिनका ध्यान मानसिक पवित्रता देने वाला माना गया है। जिससे मन-मस्तिष्क द्वेष, कलह, क्रोध आदि दोषों से मुक्त रहते है। विष्णु उपासना के विशेष दिनों में एकादशी के साथ गुरुवार का दिन भी शुभ माना जाता है। क्योंकि यह ज्ञान के दाता देवगुरु बृहस्पति की उपासना का भी दिन होता है।
जानते हैं यह खास विष्णु मंत्र और पूजा की सरल विधि -
- गुरुवार या हर रोज भगवान विष्णु की प्रतिमा को केसर मिले दूध से स्नान कराएं। संभव न हो तो शुद्ध पवित्र जल या गंगाजल से स्नान के बाद पीला चंदन, सुंगधित फूल, इत्र, पीताम्बरी वस्त्र, दूध व घी की मिठाई का भोग लगाएं।
- चंदन धूप व गोघृत का दीप लगाकर नीचे लिखे विष्णु के स्वरूप की महिमा प्रकट करते इस आसान मंत्र को मानसिक शक्ति व बल की कामना से बोलें -
अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्।।
अर्थ है गहरे नीले बादलों जैसे श्याम रंग वाले और कमल के फूल की तरह सुंदर नेत्र वाले भगवान विष्णु के ध्यान से मैं स्नान करने के समान पवित्र हो गया हूं।
- मंत्र स्मरण व पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती कर, दीपज्योति, प्रसाद ग्रहण कर साष्टांग प्रणाम करें। यह अहं भाव का अंत करने वाला भी माना गया है, जो कलह का कारण है।
ऐसी मनोदशा से छुटकारे के लिए जरूरी है समय व कार्य का सही प्रबंधन। किंतु धार्मिक उपायों में विष्णु भक्ति श्रेष्ठ मानी गई है। क्योंकि पौराणिक मान्यताओं में त्रिदेवों में एक जगतपालक भगवान विष्णु को सत्व गुणों का स्वामी माना गया है। जिसका मतलब है कि सांसारिक जीवन में हर तरह से पावनता, शांति, ज्ञान, प्रेम, सुख, आनंद, धैर्य, ऊर्जा, बल, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि सभी शुभ व मंगल भावों से जुड़ी कामनासिद्धि के लिए भगवान विष्णु का स्मरण श्रेष्ठ उपाय है।
शास्त्रों में खासतौर पर विष्णु उपासना के लिए ऐसे मंत्र भी बताए गए हैं, जिनका ध्यान मानसिक पवित्रता देने वाला माना गया है। जिससे मन-मस्तिष्क द्वेष, कलह, क्रोध आदि दोषों से मुक्त रहते है। विष्णु उपासना के विशेष दिनों में एकादशी के साथ गुरुवार का दिन भी शुभ माना जाता है। क्योंकि यह ज्ञान के दाता देवगुरु बृहस्पति की उपासना का भी दिन होता है।
जानते हैं यह खास विष्णु मंत्र और पूजा की सरल विधि -
- गुरुवार या हर रोज भगवान विष्णु की प्रतिमा को केसर मिले दूध से स्नान कराएं। संभव न हो तो शुद्ध पवित्र जल या गंगाजल से स्नान के बाद पीला चंदन, सुंगधित फूल, इत्र, पीताम्बरी वस्त्र, दूध व घी की मिठाई का भोग लगाएं।
- चंदन धूप व गोघृत का दीप लगाकर नीचे लिखे विष्णु के स्वरूप की महिमा प्रकट करते इस आसान मंत्र को मानसिक शक्ति व बल की कामना से बोलें -
अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्।।
अर्थ है गहरे नीले बादलों जैसे श्याम रंग वाले और कमल के फूल की तरह सुंदर नेत्र वाले भगवान विष्णु के ध्यान से मैं स्नान करने के समान पवित्र हो गया हूं।
- मंत्र स्मरण व पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती कर, दीपज्योति, प्रसाद ग्रहण कर साष्टांग प्रणाम करें। यह अहं भाव का अंत करने वाला भी माना गया है, जो कलह का कारण है।
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